आप सभी किसान साथियों का आज की इस पोस्ट में स्वागत है | क्या आप जानते हैं की टिश्यू कल्चर तकनीक से केले की खेती ( Banana Farming ) करके किसान बहुत ही अच्छी कमाई कर सकते हैं | देखिये केले की टिश्यू पौध की खेती एक आधुनिक तकनीक है जो किसानों को ज्यादा उत्पादन और लाभ देती है | दोस्तों इस विधि से तैयार पौधे रोगमुक्त, उच्च गुणवत्ता और समान फलों के साथ प्रति पौध अधिक उपज भी मिलती है | अब केलों की खेती करने वाले किसान टिश्यू से तैयार पौधे की रोपाई कर बेहतर लाभ ले सकते हैं |
किसान साथियों कल्चर तकनीक के माध्यम से केलों की खेती में बंपर उत्पादन हासिल करने की एक बेहतर तकनीक है, जो पुराने केला किस्मों की खेती की कई चुनौतियों का समाधान भी कर देती है | देखिये इस विधि से उच्च गुणवत्ता वाले, एक समान और रोग-मुक्त पौधे तैयार किए जाते हैं | दोस्तों इससे केले की उपज और गुणवत्ता दोनों ही बेहतर होती है और किसानों को अधिक लाभ भी मिलता है |
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दोस्तों पिछले कुछ वर्षों में कल्चर विधि से केले की उन्नत प्रजातियों के पौधे तैयार किए जा रहे हैं | देखिये इस विधि से तैयार किये गए पौधों से केलों की खेती करने के अनेक लाभ हैं | केलों की खेती करने वाले किसान कल्चर से तैयार पौधे की रोपाई कर बेहतर लाभ ले सकते हैं |
कल्चर तकनीक से केले की खेती ( Banana Farming ) की खासियत
देखिये दोस्तों डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा समस्तीपुर के प्लांट पैथालॉजी के हेड और आईसीएआर -एआईसीआरपी (फल) परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. एस.के सिंह का कहना है कि कल्चर तकनीक से तैयार केले के पौधे स्वस्थ होते हैं और इनमें रोग भी नहीं होते हैं साथ ही इसमें फलों का आकार, प्रकार और गुणवत्ता भी समान ही होती है | टिश्यू कल्चर से तैयार केले के पौधों में फलन लगभग 60 दिन पहले ही हो जाता है |
इसमें किसान साथियों पहली फसल 12-14 माह में मिलती है, जबकि पारंपरिक पौधों में 15-16 माह लग जाते हैं और कल्चर तकनीक से तैयार किये गए पौधों की औसत उपज 30-35 किलोग्राम प्रति पौधा तक भी हो सकती है | देखिये वैज्ञानिक विधि से खेती करके 60 से 70 किलोग्राम के घौद प्राप्त किए जा सकते हैं | पहली फसल के बाद दूसरी फसल (रैटून) 8-10 माह में आ जाती है, तो इस प्रकार 24-25 माह में दो फसलें ली जा सकती हैं | इन कल्चर किस्मों की खेती करने से समय और धन दोनों की बचत होती है, जिससे लाभ का दायरा भी बढ़ जाता है |
टिश्यू कल्चर तकनीक से केले के पौधे कैसे हैं बेहतर ?
दोस्तों डॉ. एसके सिंह के मुताबिक सभी पौधे आनुवंशिक रूप से मूल पौधे के समान ही होते हैं और रोगजनकों से भी मुक्त होते हैं | ये पौधे पारंपरिक पौधों की तुलना में अधिक सशक्त और तेजी से विकास करने वाले पौधे होते हैं | इनमे जल्दी फल लगते हैं और अधिक उपज क्षमता के गुण भी होते हैं | हाई डेंसिटी तरीके से रोपण किया जा सकता है, जिससे रासायनिक इनपुट की जरूरत भी कम होती है | साथियों ये पौधे सूखे और तापमान में उतार-चढ़ाव जैसे तनावों के प्रति अधिक सहनशील भी होते हैं | इसमें नई और बेहतर किस्मों के तेजी से गुणन की सुविधा भी होती है |
केले की रोपाई कब और कैसे की जानी चाहिए ?
किसान साथियों खेत की तैयारी के समय 50 सेंटीमीटर गहरा, 50 सेंटीमीटर लंबा और 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है | देखिये बरसात के मौसम शुरू होने से पहले यानी जून के महीने में खोदे गए गड्ढों में 8 किलो कंपोस्ट खाद, 150-200 ग्राम नीम की खली, 250-300 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट आदि डालकर मिट्टी भरी जाती है और अगस्त के महीने में इन गड्ढों में केले के पौधों को लगाया जाता है | आम तौर पर रोपाई 1.6 बाई 1.6 मीटर की दूरी पर की जाती है, यानी लाइन से लाइन के बीच की दूरी 1.6 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 1.6 मीटर होती है | इस तरह 1560 पौधे एक एकड़ में लगते हैं |
पशुओं का हरा चारा यहाँ उपलब्ध है :- Kisan Napier Farm
किसान साथियों ये थे केले की खेती ( Banana Farming ) की जानकारी | उम्मीद करते हैं आपको केले की खेती ( Banana Farming ) की जानकारी पसंद आयी होगी | अगर आपको आज की टिश्यू कल्चर की ये जानकारी पसंद आयी तो आप इस जानकारी को ज़्यादा से ज़्यादा किसान साथियों के साथ फेसबुक ग्रुप्स और व्हाट्सप्प ग्रुप्स के माध्यम से शेयर करें | क्योंकि इसी तरह की जानकारी आपको हर रोज़ हमारी इस वेबसाइट पर देखने को मिलती रहेगी |