भारत के कृषि क्षेत्र में उन्नति की दिशा में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (CCSHAU) ने एक नई ऊपजाऊ गेहूं की किस्म WH 1402 विकसित की है। विश्वविद्यालय के गेहूं एवं जौ अनुभाग द्वारा विकसित इस किस्म को न्यूनतम सिंचाई और मध्यम उर्वरकों में भी उच्च उपज देने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है।
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नई किस्म WH 1402 की प्रमुख विशेषताएं
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. कंबोज ने बताया कि इस किस्म को विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी भारत के राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के लिए उपयुक्त पाया गया है। इस किस्म की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह सीमित संसाधनों में भी बेहतर उत्पादन देती है।
औसत और अधिकतम उपज में WH 1402 की क्षमता
इस नई किस्म की औसत उपज 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि अधिकतम उपज 68 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है। यह उपज केवल दो सिंचाई में हासिल की जा सकती है, जो इसे उन क्षेत्रों के लिए लाभकारी बनाती है, जहां पानी की कमी है।
रोग प्रतिरोधी गुण
इस किस्म को रोग प्रतिरोधक गुणों के लिए भी सराहा गया है। प्रोफेसर कंबोज के अनुसार, यह किस्म पीले रतुआ, भूरे रतुआ और अन्य प्रमुख बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है। यह खास गुण इसे अन्य पारंपरिक किस्मों से अलग बनाता है, जिससे किसान फसल को बेहतर तरीके से सुरक्षित रख सकते हैं।
7.5% अधिक उत्पादन देने वाली किस्म
इस किस्म की उत्पादकता अन्य किस्मों की तुलना में अधिक है। कुलपति ने बताया कि यह किस्म NIAW 3170 की तुलना में 7.5% अधिक उपज देती है। इससे यह कम पानी वाले क्षेत्रों में खेती करने वाले किसानों के लिए एक अच्छी और लाभकारी किस्म साबित हो सकती है।
WH 1402: सूखा और कम उपजाऊ क्षेत्रों के लिए अनुकूल
राष्ट्रीय स्तर पर इस किस्म को रेतीले, कम उपजाऊ और कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त माना गया है। यह गुण इसे सीमांत किसानों के लिए आदर्श बनाता है, जो अधिकतर उन क्षेत्रों में खेती करते हैं जहां भूमि उपजाऊ नहीं होती।
उर्वरक और पोषक तत्वों का प्रयोग
देखिये इस किस्म से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए कुछ विशिष्ट उर्वरक और पोषक तत्वों का प्रयोग आवश्यक है। किसानों को 90 किलोग्राम शुद्ध नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर का उपयोग करने की सिफारिश की गई है। यह उर्वरक संयोजन फसल को पोषण प्रदान करता है और उपज में वृद्धि करता है।
WH 1402 किस्म के लाभ
- कम सिंचाई में उपज: दो सिंचाई में ही अच्छी पैदावार देती है।
- रोग प्रतिरोधी: पीले और भूरे रतुआ जैसी गंभीर बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी।
- सामान्य से अधिक उपज: NIAW 3170 की तुलना में 7.5% अधिक उपज।
- संधारित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त: कम उपजाऊ और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में अच्छा उत्पादन।
- उर्वरकों के संयमित उपयोग से उच्च उपज: फास्फोरस, पोटाश और नाइट्रोजन का उचित प्रयोग।
WH 1402 से किसानों को मिलने वाले लाभ
इस किस्म का उपयोग उन किसानों के लिए विशेष लाभकारी है, जिनके पास सिंचाई के सीमित संसाधन हैं। इस किस्म की अधिक उत्पादन क्षमता और रोग प्रतिरोधक विशेषताएं इसे एक उत्कृष्ट विकल्प बनाती हैं।
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WH 1402: एक उन्नत किस्म की ओर कदम
कृषि वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों का परिणाम WH 1402 है, जो भारत में गेहूं की खेती को नई ऊंचाईयों तक ले जाएगी। WH 1402 जैसी उन्नत किस्मों का विकास न केवल किसानों की आय में वृद्धि करेगा, बल्कि कृषि में आत्मनिर्भरता की दिशा में भी बड़ा कदम साबित होगा।
निष्कर्ष
WH 1402 की नई किस्म भारत के गेहूं उत्पादन में एक सकारात्मक बदलाव लाएगी। इसके रोग प्रतिरोधक गुण और उच्च उपज क्षमता से किसानों को कई लाभ प्राप्त होंगे। इसके विकास में CCSHAU का योगदान भारतीय कृषि के लिए मील का पत्थर साबित होगा।