Cotton Msp : गुजरात के व्यापारी और संगठनों ने कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कम करने की मांग की है। उनका कहना है कि MSP अधिक होने के कारण निजी व्यापारियों द्वारा कपास की खरीद घट गई है और निर्यात पर भी नकारात्मक असर पड़ा है। व्यापारियों का मानना है कि कपास के लिए एक मुक्त बाजार तंत्र लागू किया जाना चाहिए, जिसमें किसानों को अधिक सब्सिडी मिले।
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मौजूदा स्थिति
सरकार ने वर्ष 2024-2025 के लिए सामान्य कपास की MSP 7,121 रुपये प्रति क्विंटल और मध्यम और लंबी स्टेपल कपास की किस्मों के लिए 7,521 रुपये प्रति क्विंटल तय की है। गुजरात के गुजकोट व्यापार संघ के सचिव अजय शाह के अनुसार, दिसंबर तक सरकार ने किसानों से लगभग 60% कपास खरीदी है। उच्च MSP के कारण निजी क्षेत्र की खरीद में गिरावट आई है।
निर्यात और आयात पर प्रभाव | Cotton Msp
महंगी कपास के कारण निर्यात पर असर पड़ा है और कई कंपनियां अब ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिमी अफ्रीकी क्षेत्रों और अमेरिका से सस्ता कपास आयात कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर, अक्तूबर 2024 में ब्राजील ने अपने कपास निर्यात की कीमत 0.7060 प्रति पाउंड घटाई थी। इससे भारतीय कपास के निर्यात में प्रतिस्पर्धा की कमी हो गई है।Cotton Msp
व्यापारियों की मांग
शाह ने कहा कि भारत का निर्यात प्रतिस्पर्धी नहीं है। रुपये के कमजोर होने से निर्यात में थोड़ी मदद मिल सकती है, लेकिन उच्च MSP और बढ़ी हुई लागत के कारण भारतीय व्यापारी लाभ नहीं कमा पा रहे हैं। व्यापारियों का सुझाव है कि:
- कपास के MSP को कम किया जाए।
- किसानों को सीधे सब्सिडी दी जाए।
- मुक्त बाजार तंत्र लागू किया जाए।
संभावित समाधान | Cotton Msp
कपास व्यापारियों और संघों का मानना है कि:
- MSP में कमी से निजी व्यापारियों की खरीद बढ़ेगी।
- निर्यात के अवसर बढ़ेंगे, जिससे वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा संभव होगी।
- किसानों को सब्सिडी देकर उनकी आय सुरक्षित की जा सकती है।
निष्कर्ष
कपास क्षेत्र और कपड़ा उद्योग को बचाने के लिए व्यापारियों ने सरकार से नीति में बदलाव की मांग की है। अगर MSP को तर्कसंगत किया जाता है और किसानों को सब्सिडी दी जाती है, तो भारत कपास निर्यात में अपनी प्रतिस्पर्धा वापस पा सकता है और किसानों को भी आर्थिक सुरक्षा मिल सकेगी।