Global Market Me Basmati Exporters Ki MSP Hatane Ki Maang भारत के बासमती चावल निर्यातकों ने हाल ही में सरकार से न्यूनतम निर्यात मूल्य (MSP) को कम करने या हटाने की मांग की है, ताकि वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बरकरार रहे और किसानों को नुकसान न हो। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष सतीश गोयल ने खाद्य मंत्री के साथ बैठक में जोर दिया कि MSP की वजह से भारत को पाकिस्तान के मुकाबले पीछे नहीं रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि किसानों और बासमती चावल उद्योग की सुरक्षा के लिए MSP में तत्काल कटौती आवश्यक है।
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बासमती चावल के निर्यात पर संकट
भारत और पाकिस्तान दुनिया के प्रमुख बासमती चावल उत्पादक देश हैं। भारत मुख्य रूप से ईरान, इराक, यमन, सऊदी अरब, यूएई और अमेरिका जैसे देशों को 4-5 मिलियन टन बासमती चावल निर्यात करता है। लेकिन MSP की वजह से भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। बासमती चावल की कई किस्में हैं, जिनकी कीमतें 700 डॉलर प्रति टन के आसपास हैं, जबकि भारत ने पिछले साल MSP को 1200 डॉलर प्रति मीट्रिक टन निर्धारित किया था, जिसे बाद में घटाकर 950 डॉलर प्रति टन किया गया। फिर भी, यह वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए पर्याप्त नहीं है।
MEP का असर और सरकार की नीति
भारत ने घरेलू कीमतों पर नियंत्रण पाने के लिए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर शर्तों के साथ प्रतिबंध भी लगाया है, जिससे घरेलू बाजार में आपूर्ति बढ़ी है। लेकिन निर्यातकों का मानना है कि अगर MSP को पूरी तरह से खत्म नहीं किया गया तो नए सीजन की फसल आने पर किसानों के पास बड़ी मात्रा में स्टॉक रह जाएगा, जिससे नुकसान की संभावना बढ़ सकती है।
किसानों और उद्योग पर प्रभाव ( Global Market Me Basmati Exporters Ki MSP Hatane Ki Maang )
सतीश गोयल ने यह भी बताया कि बासमती चावल की स्थानीय खपत बहुत कम है और सरकार भी इस किस्म को राज्य भंडार के लिए नहीं खरीदती है। ऐसे में बासमती चावल की किस्मों के लिए विदेशों में ही बड़ा बाजार है, जो किसानों की आय बढ़ाने में सहायक हो सकता है। किसानों की आय में गिरावट और ईंधन, उर्वरक की बढ़ती कीमतों की वजह से वे पहले ही मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, और निर्यात पर लगी पाबंदियां उनकी आर्थिक स्थिति को और खराब कर सकती हैं।
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समाधान की दिशा
बासमती चावल के निर्यातकों का मानना है कि अगर MSP को कम किया जाए या हटा दिया जाए, तो न केवल बासमती चावल की वैश्विक मांग में इजाफा होगा, बल्कि इससे किसानों को भी राहत मिलेगी। यह कदम भारतीय बासमती चावल को पाकिस्तान के मुकाबले प्रतिस्पर्धी बनाए रखने में मदद करेगा और देश की जैव विविधता का लाभ भी बढ़ाएगा।