आप सभी किसान साथियों का आज की इस पोस्ट में स्वागत है | क्या आप जानते हैं की खरीफ मक्के की खेती ( Makke Ki Kheti ) धान से बेहतर है | धान की तुलना में मक्का की खेती के लिए कम पानी की जरूरत होती है | जल संकट वाले क्षेत्रों में मक्का की खेती अधिक फायदेमंद है | मक्का की फसल सूखा सहनशील होती है और विविध प्रकार की जलवायु में भी अच्छी उपज देती है | धान की फसल को मॉनसून की भारी वर्षा की जरूरत होती है |
मक्का की खेती कम पानी, कम लागत और बेहतर मूल्य प्राप्ति की संभावनाओं के कारण खरीफ में धान की तुलना में अधिक लाभदायक हो सकती है | सही तकनीकों और समय का पालन करके किसान मक्का की खेती से अधिक उत्पादन और लाभ कमा सकते हैं |
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अपनी उत्पादन क्षमता के कारण मक्का का उपयोग विभिन्न रूपों में हो रहा है | मानव आहार में 13 फीसदी, पोल्ट्री चारे में 47 फीसदी, पशु आहार में 13 फीसदी, स्टार्च में 14 फीसदी, प्रोसेस्ड फूड में 7 फीसदी और निर्यात व अन्य में लगभग 6 फीसदी इसका उपयोग होता है | पोल्ट्री व्यवसाय की बढ़ती मांग और इथेनॉल उत्पादन में मक्का के उपयोग के कारण इसके भावों में तेजी आई है |
किसानों की दृष्टि से देखा जाए तो खरीफ में धान का औसत उत्पादन 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है जबकि मक्का 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देता है | वह भी कम लागत और कम पानी में. इस साल मंडियों में मक्का की कीमतों में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी देखी गई है | इसलिए, अगर किसान खरीफ में मक्का की खेती करते हैं, तो उन्हें अधिक लाभ मिल सकता है | बस सही खेती की टिप्स अपनाने की जरूरत है |
क्यों करें खरीफ में मक्के की खेती ( Makke Ki Kheti ) ?
खरीफ मक्का को 627-628 मिमी प्रति हेक्टेयर पानी की जरूरत होती है, जबकि धान को औसतन 1000-1200 मिमी प्रति हेक्टेयर पानी की जरूरत होती है | मक्का की विकास अवधि धान की तुलना में कम होती है, जिससे कीट प्रबंधन की लागत कम हो जाती है | 2010-11 से 2020-21 तक मक्का के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की वार्षिक वृद्धि दर धान और गेहूं की तुलना में सबसे अधिक है, जो हर साल 7 परसेंट की दर से बढ़ रही है | कम जलभराव और कम बारिश वाले क्षेत्रों में या ऊंची और मध्यम जमीनों पर मक्का की खेती धान की तुलना में बेहतर विकल्प हो सकती है |
खरीफ सीजन में मक्के के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें
मक्का अनुसंधान सस्थान, लुधियाना (IIMR) के अनुसार, मक्का पानी भराव के प्रति बहुत संवेदनशील होता है, इसलिए इसे अच्छी जल निकासी वाली बालू-मटियार से सिल्टी-मटियार मिट्टी पर उगाना बेहतर होता है | बुवाई का सबसे अच्छा समय 20 जून से जुलाई के अंत तक होता है | हालांकि यह मॉनसून की शुरुआत के समय पर निर्भर करता है | मक्का को बीज अंकुरण और जड़ वृद्धि के लिए भुरभुरी, महीन और समतल मिट्टी की जरूरत होती है | उन क्षेत्रों में जहां पानी भराव हो सकता है, जल्दी बुवाई करना उचित होता है ताकि पौधे पानी भराव के कारण गिरने से बच सकें |
बुवाई करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
IIMR लुधियाना के मुताबिक, खरीफ सीजन में मक्के की फसल को पानी भराव से बचाने के लिए हमेशा ऊंचे बेड तकनीक से बुवाई करना उचित होता है | ऊंचे बेड वाली बुवाई में, 70 सेंटीमीटर चौड़े बेड और 30 सेंटीमीटर गहरी नालियां तैयार की जाती हैं, जो बेड प्लांटर की मदद से बनाई जाती हैं | बेड प्लांटर मशीन से बीजों की बुवाई उचित दूरी और गहराई पर सटीक रूप से होती है | मेड़ों पर बुवाई 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए, जिससे फसल पानी भराव से बच सके |
पशुओं का हरा चारा यहाँ उपलब्ध है :- Kisan Napier Farm
किसान साथियों ये थे मक्के की खेती ( Makke Ki Kheti ) की जानकारी | उम्मीद करते हैं आपको मक्के की खेती ( Makke Ki Kheti ) की जानकारी पसंद आयी होगी | अगर आपको आज की जानकारी पसंद आयी तो आप इस जानकारी को ज़्यादा से ज़्यादा किसान साथियों के साथ फेसबुक ग्रुप्स और व्हाट्सप्प ग्रुप्स के माध्यम से शेयर करें | क्योंकि इसी तरह की जानकारी आपको हर रोज़ हमारी इस वेबसाइट पर देखने को मिलती रहेगी |